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Saturday, February 27, 2010

अब दुआ अर्श पे जाती है असर लाने को...!!

कल ही मेरी नज़र उस पर पड़ी. हालांकि इस इलाके के बाकी सभी लोगों की तरह मेरे आने-जाने का रास्ता भी वही एक है, लेकिन दिनभर का रूटीन दिमाग में लेकर सुबह काम पर भागने की जल्दी में मैंने उसकी और ध्यान नहीं दिया और रात देर गए लौटने के समय तक वह जा चुका होता है. लेकिन शनिवार की सुबह जब बेटे को स्कूल छोड़ने निकला तो मैंने उसे देखा. घरों के इस तरफ के ब्लोक से बाहर निकलने और मेन सड़क मिलने के मोड़ पर पार्क के कोने में वह खड़ा था. नीचे जमीन पर छोटी-छोटी शीशियाँ राखी थी जिनमें से एक-आध में कुछ तेलनुमा भरा हुआ नज़र आ रहा था. और पीछे पार्क की रेलिंग पर उसने एक बैनर बाँध रखा था जिसपर 'तेल मालिश, जोड़ों के दर्द का इलाज़' लिखा हुआ था.
ध्यान उसपर इस लिए नहीं गया कि शहर भर में जगह जगह खुले फिजियोथेरेपी सेंटरों के रहते हुए भला इसने इतना बड़ा रिस्क कैसे लिया ऐसे बिजनेस का, और वह भी ऐसे इलाके में जहाँ घरों के चार ब्लॉक में अस्पतालों में जान पहचान रखने वाले मुझ समेत तीन डॉक्टर और सरकारी अस्पतालों में काम करने वाली कम से कम चार नर्सें रहती हैं जो पर्ची बनवाने और लाइन में लगने के झंझट से बचाने में कारगर हैं. और यह भी कि जहाँ इस बूढ़े ने यह बिजनेस शुरू किया है, उसके बा-मुश्किल आधा किलोमीटर दो नर्सिंग होम भी हैं जहाँ आर्थोपेडिक डिपार्टमेंट ठीकठाक हैं.
मेरा ध्यान उस साठ साल के बूढ़े की और इसलिए गया क्योंकि एक तो वह मेरे हिसाब से कुछ ज्यादा ही जल्दी काम पर आ गया था. मेरे ख्याल से घुटनों-जोड़ों के दर्द वाले बुजुर्ग अच्छी-खासी धूप निकलने के बाद ही घरों से निकलकर यहाँ सरेआम घुटनों की मालिश कराने आयेंगे...और दूसरी बात यह कि वह बूढा आराम से बैठकर ग्राहकों का इंतज़ार करने की बजाय खड़ा होकर हर आने-जाने वाले को हाथ उठा कर सलाम कर रहा था. पता नहीं क्यों उसका यह तरीका दिमाग में कहीं बैठ गया. सोचा शायद मार्केटिंग का तरीका है कि लोगों की नज़रों में आया जाये और फिर बिजनेस करे.
लेकिन मन माना नहीं. बच्चे को स्कूल छोड़कर जब वापस लौटा तो भी उस बूढ़े को उसी अंदाज में पाया. हर आने-जाने वाले को सलाम करते हुए. ऑफिस के लिए जब निकला उस समय तक सड़क पर भीड़ कम हो चुकी थी. मेरी गाडी को देखते ही उसने फिर उसी अंदाज में सलाम किया तो मैं रह नहीं सका और उसतक जा पहुंचा. मेरा सवाल-यह हर किसी को सलाम करके ग्राहक बनाने का तरीका क्या काम करेगा? जवाब-क्या आपने मेरे पास ग्राहकों की भीड़ देखी? नहीं..!! मैं सलाम नहीं करता..मैं यहाँ से गुजरें वालों के लिए दुआ मांगता हूँ कि उनके हाथ-पाँव सलामत रहें..शाम को सलामती से लौट आयें..जिन बच्चों के पास बुजुर्गों के पाँव दबाने की फुर्सत नहीं है, मैं तो उनके लिए बैठा हूँ...!!
क्या आपके पास है कोई जवाब??
एक और ऐसी ही घटना मुझे याद आयी है. कोई दस साल पहले की बात है. शाम को दिन ढले ऑफिस जाते समय ऑफिस के मोड़ से कुछ पहले पूर्वी दिशा में लगे पोपलर के पेड़ों की ओर मुंह ओर छिपते हुए सूरज की ओर पीठ किये हुए एक गरीब सा दिखने वाला बूढा आसमान की ओर बाहें उठाये कुछ बोल रहा था. पेड़ों से बात करने वाले किसी चरवाहे जैसी किसी कहानी का पात्र. एक महीना लगातार देखने के बाद मुझसे नहीं रहा गया. गाडी ऑफिस में पार्क करके सैर करने के बहाने मैं उसके पास पहुंचा...बूढा सचमुच पेड़ों से बात कर रहा था..'तुम महान हो..हम से बड़े हो..इन बच्चों को सांस लेने लायक साफ़ हवा देते रहना...हर मौसम में, मेरे बाद भी !!!