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Sunday, September 5, 2010

मेरी बंदगी क़बूल करने को कोई खुदा नहीं उठता ..!!

यहाँ के सरकारी अस्पताल के गायनी वार्ड के बाहर पर्ची बनवाने की लाइन में खड़ी मजदूर औरत बुलबुल के वहीँ खड़े-खड़े एक बच्ची के जन्म देने और नीचे फर्श पर सर के बल गिरी बच्ची की मौत की जांच होने को लेकर कुछ तस्सली हुई कि शुक्र है एक बच्ची की जान की कीमत किसी ने तो आंकने की कोशिश की..और वह भी एक गरीब मजदूर औरत की बच्ची.
लेकिन, वहां बुलंदशहर के पास के उस कसबे के अस्पताल में पैदा हुयी उस बच्ची की मौत पर किसी ने मातम नहीं मनाया जिसे बचाने की कोशिश में उस गायनी डाक्टर ने लेबर रूम में कड़ी मशक्कत की. उस मासूम बच्ची ने लाजिमी तौर पर आदम जात लोगों से यह उम्मीद तो की ही होगी कि उसे उसकी माँ के सीने से लगने का एक मौका तो दिया ही जायेगा....पर शायद उसकी माँ के साथ अस्पताल आयी उस औरत जात इंसान को शायद यह मंज़ूर नहीं था कि उसके घर में एक लड़की आये जो बड़ी होकर उसकी ही तरह दुःख तकलीफ पाए....नौ महीने तक उसे लिए घूमने और उसे जनम देने वाली का क्या....भूल जायेगी और तीन महीने में.
मैं उसे नहीं जानता था, उसकी माँ 22 साल की पूजा को भी नहीं !! प्राईमी, हिमोलिटिक अनीमिया, अज्मैटिक !!...मुझे जब लेबर रूम से कॉल आयी तो मैं उससे मिला...'डिस्ट्रेस' में थी. 'मिकोनियम' पास कर दिया था...हुयी तो नोर्मल डिलीवरी से ही पर मैंने देखा कि बच्ची को इन्टेंसिव केअर की जरूरत थी. गायनेकोलोजिस्ट से सलाह के बाद मैंने उसके अटेंडेंट को उसे बुलंद शहर ले जाने की सलाह दी.
सुबह खबर आयी कि बच्ची बच नहीं पायी...मुझे कुछ हैरानी हुयी, इसलिए कि बच्ची डिस्ट्रेस में जरूर थी लेकिन इतनी क्रिटिकल भी नहीं थी. बाद में स्टाफ ने बताया कि बच्ची को गाडी में ले जाते हुए तो देखा था, और यह भी कि बच्ची की 'बेचारी' दादी बच्ची को चम्मच से दूध पिलाने की कोशिश भी कर रही थी...!! मैं केस समझ चुका था..!! वार्ड में राउंड के दौरान मैंने पूजा को बेबसी भरी आँखों से लेबर रूम की तरफ टकटकी लगाकर देखते हुए पाया. इस उम्मीद में कि शायद उधर से कोई मासूम सी किलकारी सुन जाए..!! पर अफ़सोस..!!
और डाक्टर अनुराग, पता नहीं क्यों मुझे आपकी याद बहुत आयी जब पूजा को डिस्चार्ज करवाकर ले जा रही उसकी सास ने अपनी बेटी की मौत का मातम मना रही एक माँ के आंसूओं को ड्रामा बता कर उसे डांट दिया...लेबर रूम से किसी आवाज़ सुन जाने की आखिरी उम्मीद पर पीछे मुड़-मुड़कर देखती पूजा को मैं उस वक़्त भागकर पकड़ने से खुद को रोक नहीं पाया जब मैंने देखा, उसके परिवार के लोग उसे वहीँ सड़क किनारे छोड़कर गाडी भगा ले गए...धूल के गुब्बार में अज्मैटिक अटैक का शिकार होकर बेदम होती एक और माँ..!!