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Friday, March 13, 2009

ओए...हैप्पी होली, होली..होली चला....!!!

होली के दिन आपसी प्यार मोहब्बत का ऐसा नज़ारा पिछले कई सालों बाद देखने को मिला. मेरे मोहल्ले की गुस्सैल महिला मोहल्ले भर के रंग पुते बच्चों को लाइन में खड़ा करके समभाव से उनके मुंह धो रही थी. वह काले-नीले रंग से मुंह पुते बच्चों में से एक को पकड़ती और बड़े जतन से गीले कपड़े से उनका मुंह साफ़ करती. इस प्रेम भाव का रहस्योदघाटन शाम को हुआ जब वह मोहल्ले भर के बच्चों को गालियाँ दे रही थी और यह शिकायत भी कर रही थी कि उसे अपने बच्चे को पहचानने के लिए मोहल्ले भर के बच्चों का मुंह धोना पड़ गया।
खैर, होली के न तो अब रंग कि ऐसे रहे और न ही प्यार. अब मोहल्लों में भी विज्ञापन वाली होली मनायी जाने लगी है. लोग-बाग़ होली के लिए खास तौर पर सफ़ेद कपड़े बनवाते हैं. इसका एहसास भी मुझे अपने मोहल्ले की आंटी से हुआ जो फैशन डिजाईन का कोर्स करने वाली उनकी बेटी के सफ़ेद सूट को लेकर उतावली थी और मोहल्ले में ही सिलाई का काम करने वाली एक अन्य औरत से उलझ रही थी. कारण यह कि उसकी मॉडल बेटी ने कॉलेज के दोस्तों के साथ होली खेलने जाना था, जिसके लिए उसे सफ़ेद सूट चाहिए था. पता नहीं सिलसिला फिल्म में रेखा ने रंग बरसे वाले गाने में सफ़ेद सूट क्यों पहन लिया था. यह बात भी जानना रोचक होगा कि मोहतरमा जब शाम को होली खेल कर वापस आयी तो उनके होली खेले जाने का सबूत सिर्फ उनके चेहरे पर लगे तीन रंग के तिलक थे. उसके सफ़ेद सूट की क्रीज़ भी ख़राब नहीं हुयी थी. पता चला एक अखबार वालों की मुहिम पर चलकर कॉलेज में तिलक होली मनाई गयी थी, जिसमें एक दूसरे को सिर्फ तिलक लगाया गया था और वह भी सूट के रंग और चेहरे की रंगत को मैच करता हुआ।
मुझे अपने बचपन की होली याद आ गयी,जब हम होली से कई दिन पहले से ही स्कूल के बसते में रंग का पैकेट डालकर स्कूल ले जाते थे और छुट्टी के मौका पाकर एक दूसरे को लगा देते थे. यह बात और है कि होली से कई दिन पहले ही कपड़े रंगीन करने शुरू कर देने के कारण घर में जो पिटाई होती थी, उसका रंग भी और ही होता था. वह दिन भी मुझे याद है जब होली के दिन पक्का रंग बनाने के चक्कर में मेरा दोस्त लखन सिंह कई एक्सपेरिमेंट करता था और ऐसा रंग बनाता था कि कई दिन तक घिस-घिसकर उतारने के बाद भी कान और गर्दन पर लगा रह ही जाता था. पूरे मोहल्ले के बच्चे शाम तक रंगों में चेहरे रंगकर जब शाम को मैदान में क्रिकेट खेलते थे तो शक्लें ऐसी होती थी कि एक दूसरे को भी नहीं पहचान पाते थे. अगले दिन स्कूल में हमारे मोहल्ले के बच्चों का रंग अलग ही नज़र आता था।
तब एक चीज़ और थी. तब पिचकारियाँ सीधी-सादी हुआ करती थी. स्पाइडरमैन जैसे डिजाइन वाली नहीं. अब तो पीठ पर पानी का टैंक बांधकर पानी फेंकने वाली पिचकारियाँ भी आ गयी हैं. और रंग भी अजीब से नामों वाले. पहले गिनती के रंग हुआ करते थे. लाल, पीला और हरा. अब पर्पल, मजेंटा....
रंग से मुझे याद आया कि मेरा चार साल का बेटा इस होली को लेकर उत्साहित था, क्योंकि उसे शायद पहली बार पता लग रहा था कि होली के दिन बालकनी में खड़े होकर किसी पर भी पानी फेंका जा सकता है और और ऐसा करने से डांट नहीं पड़ती. और यह भी कि किसी को भी रंगा जा सकता है. उसने मुझसे रंग दिलाने को कहा. मैंने उससे कहा कि मैं उसे नीला रंग दिला दूंगा. लेकिन उसने तीन रंगों कि मांग की. नीला, वनीला और चाकलेट...!!!
और अंत में हमारे एक अंकल की बात भी....सुबह-सुबह मोहल्ले से अंकल की आवाज़ आयी. हैप्पी होली..हैप्पी होली....मैं हैरान कि अंकल ने सुबह-सुबह किसके साथ होली खेलना शुरू कर दिया. बाहर निकल कर देखा तो अंकल मोटरसाईकल पर तेज रफ़्तार से जाने वाले उनके बेटे को होली-होली (धीरे-धीरे) जाने को कह रहे थे...ओये हैप्पी होली...हैप्पी होली....!!!!

Saturday, March 7, 2009

प्रेम की नगरी में कुछ हमरा भी हक होईबे करी....

प्रेम करने का मतलब होता है, जेहाद करने वालों की जमात में शामिल होना। और इधर पिछले कुछ वक़्त से मैं देख रहा हूँ की जेहादियों की तादाद तेजी से बढ़ रही है। इसका पुख्ता सबूत मुझे मिला पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट से, जहाँ जेहादियों की कतार में खड़े होने वाले लड़के-लड़कियां ज़माने से ज़्यादा अपने घरवालों के डर से भाग कर अदालत की शरण में आते हैं और गुहार लगाते हैं कि उन्हें प्रेम करने के आरोप में क़त्ल कर दिए जाने से बचाया जाए।
पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट में साल करीब पाँच हज़ार ऐसे जेहादी आते हैं और अदालतों से गुहार लगाते हैं कि उनके मां-बाप को रोका जाए उनकी जिंदगी में टोका टाकी करने से। अदालत उनके इलाके के पुलिस वालों को आर्डर करती है कि प्रेम करने वालों को कुछ न कहा जाए। अब अदालत ने एक कमेटी बना दी है ताकि घर से भागकर शादी करने वाले इन जेहादियों के लिए एक सिस्टम बनाया जा सके। कमेटी के एक मेंबर हैं राजीव गोदारा। गोदारा कहते हैं कि समस्या समाज की सोच बदलने की है। उनका कहना है की प्रेम विवाह करने को व्यक्तिगत आज़ादी के साथ जोड़कर देखा जाना चाहिए न कि सामाजिक नियमो के प्रति विद्रोह के रूप में। वैसे वे एक सवाल यह भी करते हैं कि शादी करने या न करने को भी कानूनी या सामाजिक जामा क्यों पहनाया जाना जरूरी है? अगर दो व्यस्क उनकी मर्ज़ी से साथ रहना चाहते हैं तो उसमे तंत्र या समाज की मंजूरी लेना जरूरी क्यों हो? ख़ुद की खुशी के लिए किसी से मंजूरी लेना संविधान की मूलभूत अवधारणा का उल्लंघन है।
खैर, मुद्दा यह है कि प्रेम करने वालों को आराम से जीने क्यों नहीं दिया जाता. प्रेम करने वालों कि जान के दुश्मन लोग क्यों हो रहे हैं, यह समझना मुश्किल हो रहा है. चलो माँ-बाप कि तो समझ आती है कि उन्हें अपने बच्चे जायदाद लगते हैं और उनपर हक समझना माँ-बाप का हक होता है. और यह भी कि माँ-बाप चाहे कितने भी आधुनिक हो, वे समझते हैं कि उनके बच्चे हमेशा प्यारे से नन्हे-मुन्ने हैं और उन्हें अभी दुनियादारी का नहीं पता.लेकिन ये बात मेरी समझ से परे हो रही है कि हरियाणा में खाप के नाम पर धर्म और समाज कि ठेकेदारी करने वालों को किसी से क्या लेना देना है? यह लगभग वैसा ही है जैसे कॉलेज में नए नए दाखिल होने वाले लड़के करते हैं. जिस लड़की पर फ़िदा हो गए, वो सबसे शरीफ लड़की होती है, बशर्ते कि वह लड़की सिर्फ और सिर्फ उसी लड़के के प्रस्ताव को हाँ करे. अगर उसे हाँ नहीं करे तो किसीको नहीं हाँ न करे. और अगर किसी और लड़के को हाँ कर दे उस से बदचलन लड़की और कोई नहीं...!!
ऐसा ही व्यवहार खाप पंचायतों के ठेकेदार कर रहे हैं कि लड़की या तो हमारी मर्ज़ी वाले लड़के से शादी करेगी नहीं तो दुनिया भर के लड़के उसके भाई बनेंगे. आप देख लीजिये हरियाणा में येही हुआ. अपनी मर्ज़ी से शादी करने यानी प्रेम विवाह करके अपना घर बसा लेने वाली लड़की को समाज के ठेकेदारों ने भाई-बहन बनने के लिए डराया- धमकाया और गाँव से निकल दिया. पूछे कोई इन बंद दिमाग वालों से कि शादी करके एक बच्चा पैदा करके कोई लड़की कैसे अपने शौहर को भाई मान लेगी? वोह मरना पसंद करेगी ऐसी जलालत से. मनोज और बबली कांड में तो ऐसा ही हुआ. दोनों को जान से हाथ धोना पड़ा. पता नहीं कब समझेंगे लोग कि एक ही जनम मिला है जीने के लिए. प्यार से जियो. उम्र इतनी है ही कहाँ कि नफरत के लिए वक़्त मिले?? रोहतक में जगमती सांगवान नाम की जुझारू महिला हैं. प्रेम विवाह करने वालों की तरफ खड़ी हैं. सुबह निकलती हैं और घूम घूमकर समाज के ठेकेदारों की बंद अक्ल को खोलने के काम में जुटी रहती हैं.. अमेरिका में बसी पत्रकार रमा श्रीनिवासन ने भी इस मामले में अपने सुझाव भेजे हैं. वे तो यह कहती हैं की हरियाणा में प्रेम विवाह करने वालों के खिलाफ दर्ज होने वाले मामलों की सुनवायी हरियाणा में होनी ही नहीं चाहिए क्योंकि पुलिस वाले भी उसी सामाजिक सोच के हैं. ऐसे सुझावों पर गौर करना जरूरी है क्योंकि युवा वर्ग को दबा कर रखना किसी चिंगारी को दबाये रखने जैसा ही होता है...अच्छा है युवा वर्ग अपनी जिम्मेदारी को अपने सर लेने की जिद कर रहा है. आईये उन्हें भी समाज में उनका हक दे दें. और वे मांग भी क्या रहे हैं? प्रेम करने का हक. क्या उनका इतना भी हक नहीं है समाज पर??