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Saturday, May 30, 2009

कोड वर्ड का मतलब.

मसला इस बात पर उठा है कि घर के सदस्यों के पास एक ऐसा कोडवर्ड होना चाहिए जिसको सिर्फ वही जानते हों ताकि मुसीबत के समय मदद मिल सके. कोडवर्ड का मामला भी अभी चंडीगढ़ के एक अखबार ने सुझाया है. असल में हुआ यह कि चंडीगढ़ के बिजनेसमैन ललित बहल को दिल्ली से चंडीगढ़ लौटते समय रात को कुछ लुटेरों ने उनकी गाडी सहित अगवा कर लिया. ड्राईवर समेत जब बहल को उन्हीं कि कार में लेकर लुटेरे जब बहल के घर पहुंचे और गेट खुलवाया तो उन्होंने इशारे से पत्नी को बताने कि यह लोग 'रोबर्स' हैं. पत्नी ने दरवाजा खोल दिया. लुटेरे सारे परिवार को बंधक बना कर रातभर घर की तलाशी लेते रहे और लूटपाट करके चलते बने. बाद में बहल की पत्नी ने बताया कि उन्हें लगा लुटेरे उनके पति के दोस्त थे और उनका नाम 'रोबर्स' था. जय हो...!
खैर, इसी बात से मुझे कोडवर्ड रखने वालों के कई किस्से याद आ गए. उनमें से कई कोलेज के दिनों के हैं जब एक-दूसरे को सीटी बजाकर या किसी और तरीके से सिग्नल दिया करते थे. कई प्रोफेसरों के नाम कोड वर्ड प्रणाली के शिकार थे. 'बाबा' , 'मोटू', या लपूझन्ना की तर्ज पर नेस्ती मास्टर टाईप.
फिर यह भी पता लगा कि कोड वर्ड कि माया पूरे शहर में ही फैली थी. पुरानी बात है. पंजाब में आतंकवाद था और पुलसिया राज था. जगह जगह सड़कों पर तलाशी-नाके. और पुलिस वाले थे कि कोलेज में पढने वालों को ज्यादा ही रोकते थे-पैसे ऐंठने के चक्कर में. फिर एक कोड वर्ड निकला 'मामे'. पंजाब भर में चला. आज भी चल रहा हर. चंडीगढ़ में एक तरफ से आने वाले दूसरी और से आने वालों को पूछते थे ' मामे?' दूसरा हाथ हिला कर चला जाता था. या फिर बिना हेलमेट पहने मोटरसाईकल चलाने वाले लड़के एक दूसरे को भली मानसियत दिखाते हुए खुद ही बता देते थे कि आगे मामे हैं. और हम रास्ता बदल लेते थे.
उन दिनों मोबाईल फोन नहीं थे. लैंडलाइन हुआ करते थे. तो घंटी बजाकर मेसेज भेजने का तरीका भी चला. दो छोटी घंटी का मतलब सामने वाली लड़की को बालकोनी में बुलाना था और एक का मतलब अभी रास्ता साफ़ नहीं है. आधी रात को एक छोटी सी घंटी का मतलब 'गुड नाईट' हुआ करता था. यह बात और है कि घर में सब जान चुके थे कि रात को दस बजे एक घंटी बजनी ही है.
ऐसा ही जुगाड़ हमारे एक दोस्त ने भी लगाया. हुआ यूँ कि कोलेज के दिनों में हम हॉस्टल के कमरे से परेशान होकर उसके किराए के कमरे पर दोपहर बिताने जाने वाले थे. उसे एक दिन पहले ही बता दिया गया था कि हम दोपहर को आ जायेंगे और नुक्कड़ के ढाबे से चावल राजमा लाकर रखना और दही हम लेते हुए आयेंगे. उधर हमारे आने के समय ही उस दोस्त को गर्लफ्रेंड से मिलने जाना पड़ गया. उन दिनों जब मोबाईल फोन नहीं थे और हॉस्टल वालों को घर फोन करने के लिए रात 11 बजे का इन्तेजार रहता था कि एसटीडी के रेट आधे हो जायेंगे. तो दोस्त ने हमें इसकी सूचना देनी चाही कि उसे जाना पड़ रहा घर और कमरे की चाबी बाहर बाथरूम में है. आखिर उसने कोड वर्ड निकाला और एक छोटे से कागज पर नक़ल वाली पर्ची जितने छोटे शब्दों में लिखा कि चाबी बाथरूम में है और वह कागज़ दरवाजे के ताले में फंसा दिया....

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