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Monday, June 22, 2009

किवें ऐ बाई हरमन सिद्धू....!!!

वैसे तो 23 साल किसी को भूल जाने के लिए कम नहीं होते. और ऐसे किसी इंसान को भूलने के लिए जिसे आप ठीक से जानते भी न हों. लेकिन पता नहीं क्यों हरमन सिद्धू के मामले में मेरे साथ ऐसा नहीं हुआ. हरमन को मैं कल पूरे 23 साल बाद मिला. हरमन और मैं पहली बार 10+1 में पहले दिन चंडीगढ़ के सरकारी कालेज में मिले थे. कितने दिन साथ साथ बैठे इसकी ठीक ठीक याद मुझे नहीं है, लेकिन पिछले हफ्ते नेट्वर्किंग साईट 'फेसबुक' में जब मैंने उसे देखा तो कालेज में पहले दिन की यादें ताजा हो गयी. याद आया कैसे छोटे से स्कूल से निकलकर पहले दिन इतने बड़े कालेज में जाना अपने ही शहर दिल अजनबी हो जाने का अहसास दे रहा था. पुराने दोस्तों में से किसी को ढूढती निगाहें इधर-उधर घूम रही थी. नोटिस बोर्ड पर क्लास का अता-पता लगाकर पहुंचा 'एलटी-1' यानी 'लेक्चर थिएटर-1'.
पहली बार सिनेमा हाल जैसी सीढियों जैसी क्लास में लम्बे-लम्बे बेंच पर बैठे मेरे जैसे नए लोग. आगे से तीसरी लाइन में बाएँ तरफ जाकर बैठ गया. सुबह आठ बजकर दस मिनट पर पहला लेक्चर था केमिस्ट्री का. लेक्चरर डाक्टर अत्तर सिंह अरोरा अभी तक पहुंचे नहीं थे. सीट पर बैठकर क्लास का जायजा लिया. बाएँ तरफ लड़कियां बैठी थी और अधिकतर लड़के दाईं तरफ बैठे थे. बाईं तरफ दीवार में एक बड़ी सी खिड़की खुलती थी जहाँ से बाहर एक छोटा सा मैदान था जिसके किनारे किनारे पीले रंग के फूल झूम रहे थे. बरसात का एक दौर सुबह ही गुजर चुका था.
इसके बाद मैं वापस क्लास में लौटा. मेरे साथ बाईं तरफ जो लड़का बैठा था उससे मैंने हाथ मिलाया. 'रविंदर', 'हरमन'!!! बस इतनी याद ही है मुझे उस दिन की और हरमन से पहली मुलाक़ात की. इसके बाद एक दिन और याद है जब कालेज की कैंटीन को बदल कर 'न्यू ब्लाक' के पास चली गयी थी और वहीँ एक दिन चाय लेने के लिए काउंटर की लाइन में खड़े हरमन का चेहरा मुझे याद है. उसके बाद वह साल और उसके अगला साल कहाँ गुजरा मुझे याद नहीं. बस यह याद है कि कालेज कि बिल्डिंग और क्रिकेट मैदान के बीच किनारे पर खड़े नीम्बू-पानी वाली रेहड़ी वाले के पास से गुजरने वाली कालेज की एकमात्र 'जींस वाली लड़की' को देखने के लिए हरमन मुझसे भी पहले पहुंचा होता था. हमारे कालेज हमारे एक ही लड़की थी उन दिनों जो जींस पहनने की हिम्मत करती थी. वैसे तो हमारा कालेज उन दिनों 'फार बायज' था लेकिन बी.काम कोर्स में लड़कियां भी थी. उन्हीं लड़कियों में से एक थी वो जींस वाली. उसका नाम हमें तो पता नहीं था लेकिन सीनियर्स से सुनकर पता चला था कि उसका नाम शायद किरन ढिल्लों था. सरदारनी थी. लम्बी और पतली सी. उसकी क्लास शायद दोपहर12:50 बजे ख़तम हो जाती थी और उस समय हमारा अंग्रेजी का पीरियड होता था. उसके के बाद बचता था एक पंजाबी का. सो, पंजाबी का लेक्चर 'बंक' करके हरमन मुझसे पहले नीम्बू-पानी की रेहड़ी पर पहुँचता..उसके पीछे पीछे मैं और अनुराग अबलाश.
किरन ढिल्लों दूर से ही न्यू ब्लाक से निकलती हुयी दिखती और धीरे धीरे से गेट से बाहर चली जाती. पीछे रह जाते हम. किरण ढिल्लों की जींस चर्चा का एक कारण यह भी था कि उन दिनों पंजाब में आतंकवाद की लहर चल रही थी. दो साल पहले ही '84' के दंगे होकर हटे थे. उसके चलते खाड़कू और सख्त हो गए थे और उन्होंने चंडीगढ़ समेत पूरे पंजाब में 'ड्रेस कोड' लागू कर दिया था जिसमें लड़कियों को सिर्फ सूट-सलवार पहनने और सर ढककर रखना भी शामिल था. ऐसे हालातों में किरन ढिल्लों का सरदारनी होकर जींस पहनना एक बड़ा साहसिक कदम था.
खैर, हरमन के बारे में फेसबुक पर पढ़ते ही मैंने उसे सन्देश भेजा और फिर मोबाईल नम्बर लिया और उससे मिलने जा पहुंचा. हरमन बदल गया था. पूरी तरह. मैंने उसे ऐसा देखने ही उम्मीद नहीं कि थी. सोचा था कि वह पहले की तरह उठकर गले मिलेगा और चंडीगढ़ के 'टिपिकल' तरीके से कहेगा 'किवें बाई जी'. पर ऐसा हुआ नहीं
हरमन 'व्हील चेयर' पर था. कोई 13 साल पहले एक कार दुर्घटना में उसकी रीढ़ की हड्डी में चोट लगी और शरीर के निचले हिस्से ने काम करना बंद कर दिया. पिछले 13 साल से हरमन व्हील चेयर पर है. लेकिन वह जो कर रहा है वह सभी नहीं कर सकते. हरमन 'अराईव सेफ' नाम की एक संस्था चला रहा है जो दुनियाभर परा सड़क दुर्घटनाओं को रोकने के लिए जागरूकता फैलाने का काम कर रही है. हरमन का नारा है 'अराईव सेफ' यानी सुरक्षित वापस घर पहुचें. हरमन इस दिशा में कई अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार ले चुका है. और अब देश की कई राज्य सरकारों के अफसरों को यह समझाने की कोशिश कर रहा है कि दुर्घटनाएं न सिर्फ वर्तमान और भविष्य को ख़त्म करती हैं, बल्कि यादों को भी ठेस पहुंचाती हैं...!!!
हरमन से मिलने के बाद मुझे याद आया कि किरन ढिल्लों को देखने के लिए मुझसे आगे भागता हुआ हरमन कितना सुंदर लगता था.

5 comments:

  1. aapne to hume bhi apne purane din yaad dila diye.. sath hi ye bhi pata chal gya ki ravi shrma humse kitne bade hain... hahahah

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  2. We used to hear dialogs in Hindi films,"Hum kithe aachee dost thee...ek hi shahr mein...lekin 20 saal baad aachanak mile". Never used to believe this 20 year story...used to think there would be nothing after such a long time.

    Now I can believe it, very glad to meet you after such a long time and suddenly all old memories came alive. I appreciate your memory as you remember every minor detail of those good days.

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  3. किसी पुराने जिंदादिल दोस्त का इन हालातो में मिलना दुखदायी है ...पर हरमन ने कई जमीन पे चलने वालो को पछाड़ दिया है अपने हौसलों से ..ऐसे लोग इंसानी दुनिया को बेहतर बनाए रखने में बिना शिकायत किये अपना योगदान करते है ....हाँ आपका किस्सागोई का अंदाज अच्छा लगा .

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  4. सचमुच हौसले और जिंदादिली की मिसाल हैं हरमन। उनके जज्‍बे को सलाम।

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  5. Zara suniye suna aur dil ne chaha ke sunta hi rahun..bhawnaon ka ye thathen marta dariya jo apni lehron me maazi ki rooh aur aaj ki aanch samete hai..behta hi rahe.. aur Ravi kuch na kuch kehta hi rahe...

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