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Monday, February 23, 2009

लंगोट वालों के लिए (पिंक) चड्डी.....!!! हाय राम...!!!

दिन भर वैलेंटाइन दिवस मनाने और उन्हें ऐसा करने से रोकने के लिए हाथ धोकर पीछे पड़े सेनापतिओं, दलियों और परिषादियों के कारनामों की खबरें पढ़ता रहा. मुझे दो बातें बिल्कुल भी समझ में नहीं आ रही, पहली यह कि इन्हें धरम कि ठेकेदारी करने का लाईसेन्स कौन देता है? और दूसरी बात यह कि अपनी औरतों और दूसरों की बहनों-बेटियों के साथ बदतमीजी करना क्या ये लोग माँ के गर्भ से सीखकर आते हैं या यहाँ हिन्दुस्तान में भी तालिबानिओं ने अपनी फ्रैन्चाईजी दे दी हैं ट्रेनिंग कैंप चलाने की. या राज चलाने वालों की नीतियां ही ऐसी हैं...? मंगलोर में जो हुआ उसे तो सरकारी नीति ही कहा जा सकता है क्योंकि राज चलाने वालों ने उसके ख़िलाफ़ कुछ नहीं बोला. पब में बैठी लड़किओं के साथ जो हुआ वह भी तो संस्कृति नहीं है. देश के एक एक पैसे पर, नोट पर महात्मा गाँधी की फोटो लगी है...और उनके अहिंसा के नारे को हम याद तक नहीं रख रहे. वैसे मतलब तो यह भी नहीं है की पब भरो आन्दोलनों से ही नारी आजादी आने वाली है. रेणुका चौधरी के बयान पर भी मैं हैरान हुआ, असल में वे मोहतरमा भी इस मुगालते में हैं कि पब में जाने, अधनंगे बदन रखने से ही औरतें आजाद होंगी. आज़ादी का मतलब सोच की आज़ादी से है कि वे कितनी आज़ादी से सोच सकती हैं. और सोच पब से नहीं बल्कि बुद्धिजीविता से आती है. पब में बैठने से सिर्फ़ बिंदास दिखा जा सकता है, बना नहीं जा सकता. बिंदास होने के लिए उस स्तर तक आना पड़ेगा जहाँ से एक तर्कसंगत सोच शुरू होती है. हमारे मुथालिक को भी मारपीट कर संस्कृति सिखाने की कोशिश छोड़कर पब में बैठने वाली लड़कियों को अमृता प्रीतम जैसी बिंदास बनने के बारे में बताना चाहिए जिसने आज से कई साल पहले बिना शादी किए इमरोज़ के साथ रहने का मादा दुनिया को दिखाया. यह मादा तभी आएगा जब सोच बदलेगी. मेरे एक दोस्त राजीव गोदारा की बात याद आ गयी जो सोच बदलने का जबरदस्त उदाहरण है. राजीव गोदारा पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट में वकील हैं. प्रेम विवाह करके माँ-बाप और समाज से सुरक्षा लेने के लिए हाई कोर्ट में आने वाली उन लड़कियों की बात की राजीव ने. राजीव का तर्क है की लड़कियां विवाह के लिए समाज के पित्रात्मक नियमों को ठुकरा रही हैं यह अच्छी बात है. पर उनकी सोच स्वतंत्र नहीं हो रही. क्योंकि वे समाज के नियम तोड़कर शादी कर रही हैं, लेकिन दुल्हन के लिए हाथ में कुहनी तक चूडा पहनने वाली शर्त से बाहर नहीं निकल पा रही हैं. अगर वे विवाह को संस्था के तौर पर ठुकरा रही हैं तो वे जींस पहनकर शादी क्यों नहीं करती....!!! ये ही सोच का फर्क है..जो आना चाहिए. बात मैं उन की कर रहा हूँ जिनके राज में यह सब हो रहा है. पता नहीं राज को धरम बताने वाले इंसानियत का धरम कब सीखेंगे. सब को थोड़ा टाईट करने की जरूरत है. टाईट किए बिना कुछ होने वाला नहीं है. चंडीगढ़ के नजदीक लगते हरियाणा के शहर पंचकुला में कानून और व्यवस्था की हालत ख़राब हो गयी. तीन साल में 17 डकैतियां और 18 कत्ल. डीजीपी साहब से पूछा की जनाब, एसपी ने तो कुछ नहीं किया, आपने क्या किया? डीजीपी साहब बोले-मैंने एसपी को थोड़ा टाईट कर दिया है. अगर टाईट करने से सब कुछ ठीक हो सकता है तो राज चलाने वाले इन राम सेना वालों, बजरंग दल वालों और विश्व हिन्दू परिषद् वालों को क्यों नहीं टाइट कर रही? जनता को ही टाइट किए जा रहे हैं. चंडीगढ़ में पिछले हफ्ते इंडियन नेशनल लोकदल नाम की पार्टी ने एक राजनैतिक रैली की. रैली का आयोजन हरियाणा में क़ानून और व्यवस्था ख़राब होने के कारण कांग्रेस सरकार को टाईट करना था. लेकिन जिस तरह से सारी कानून व्यवस्था को धत्ता बता कर रैली करने वालों ने चंडीगढ़ शहर के बाशिंदों को टाईट किया, वो ही जानते हैं. एक बुजुर्ग ने तो शुक्र मनाया की रैली करने वाले सत्ता में नहीं हैं, नहीं तो कानून व्यवस्था का क्या हाल करते ये सबके सामने ही है. बात जब टाईट करने की ही चल पड़ी है तो यह भी बता देता हूँ कि मुथालिक जैसे लोगों को लड़कियों के टाईट कपड़े पहनने पर पहले ही ऐतराज़ है और ऊपर से इन पिंक चड्डी वालियों ने समस्या गंभीर कर दी. पच्चीस हज़ार चड्डी भेज तो दी मुथालिक को पर उसे सारी टाईट हैं. कोई भी उसके साइज़ नहीं है. मुथालिक ने समझदारी दिखाई कि साडियां भेज दी. साइज़ का कोई चक्कर नहीं. कोई भी पहन ले. शुक्र है निशा सरूर ने 'पब जाने वाली, लूज़ और फॉरवर्ड लड़कियों' से मुथालिक के लिए बिकनी वाली चड्डी भेजने का आह्वान नहीं कर दिया. राम राम...!!! क्या ज़माना आ गया है. एक ज़माना था लडकियां घरों में भी अपनी चड्डी बड़े कपडों के नीचे छुपा कर सुखाया करती थी किसी कोने में और अब पार्सल कर रही हैं...?? मुझे याद आया कि किसी ने मुझे एक बार समझाया था कि समझदार वही होता है जो दूसरों के फेंके पत्थरों से अपने लिए मकान बना ले.. तो समझदारी इसी में हैं कि मुथालिक इन चड्डी की दूकान खोल लें. गांधीगिरी का इस से अच्छा तरीका नहीं हो सकता. वैसे एक बात मुझे समझ नहीं आ रही कि औरत जात से नफरत करने वालों के इन सभी गैंग वालों ने अपने नाम भगवान पर क्यों रखे हैं? सतयुग में तो किसी भगवन ने ऐसा नहीं किया. राम सेना वाले जिस संस्कृति की बात कर रहे हैं वे अगर रामायण में छपी माता सीता की फोटो देख लें तो उन्हें अकल आ जाए. उस ज़माने में औरतों के पहनावे के बारे में लिखा गया है कि वे साड़ी और कंचुकी पहनती थी. लड़कियों के जींस और टॉप पहनने पर ऐतराज़ करने वाले जान लें कि कंचुकी बिकनी से भी छोटा अंग वस्त्र होता है. भगवान के किसी भी अवतार ने औरतों के कपडों के तरीके पर तो ऐतराज़ नहीं किया. सीता हरण के बाद जंगल से मिले जेवर जब भगवान राम ने बजरंग बली को दिखाए और पूछा कि हनुमान, क्या तुम सीता के जेवर पहचानते हो? तो बजरंग बली ने कहा प्रभु, मैंने तो माता सीता के पैरों को ही देखा है, पैरों में पहनने वाला कोई जेवर हो तो पहचान लूँगा. हैरानी है कि बजरंग बली के नाम पर बनी बजरंग दल वाले लड़कियों के सारे बदन को जांच लेते हैं कि उसने ऊपर क्या पहना है और नीचे क्या? इन्हें भी टाईट किए जाने कि जरूरत है..लड़कियां ही करेंगी किसी दिन इन गुंडा राज चलाने वालों को टाईट. टाईट जींस के नीचे जो हील वाले टाईट जूते हैं न, वह ही राज चलाने वालो को भी ठीक करेंगे...one tight slap and MTV bolti band..!!! मुझे एक दोस्त की बात याद आ गयी जो कहता है कि जो जिस जुबान में समझता हो, उसे उसी जुबां में समझाना चाहिए, इस लिए इन राम सेना और बजरंग दल वालों को आजकल की भाषा में रामायण समझानी चाहिए....उदाहरण लीजिये....श्री राम के वनवास जाने के बाद जब भरत अयोध्या लौटे तो पाया की भाई साहब तो जंगल में चले गए हैं रहने..वे राम जी को मनाकर लाने गए. भरत बोले-भाई साहब, आप वापस चलिए, राम जी बोले-भरत, तुम जाओ, और राज करो...और सुनो, यह मेरे जूते ले जाओ. क्योंकि आज कल जूते के बिना 'राज' नहीं चलता....!!! (नोट: कृपा ध्यान दें, भगवान् राम जी का इशारा 'राज' ठाकरे की तरफ़ नहीं था...!!!)

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